भारत की सीमा चीन से नहीं, तिब्बत से लगती है – एक ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टिकोण
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद दशकों से चर्चा का विषय रहा है, लेकिन एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पहलू अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है – भारत की सीमा वास्तव में चीन से नहीं, बल्कि तिब्बत से लगती थी। तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था, और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा भौगोलिक दृष्टि से यह स्पष्ट होता है कि भारत की उत्तरी सीमा तिब्बत से जुड़ी थी, न कि चीन से। चीन ने जबरन तिब्बत पर कब्ज़ा किया और तभी से भारत-चीन सीमा विवाद ने उग्र रूप लिया। इस लेख में हम इस विषय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, राजनीतिक घटनाक्रम और भू-राजनीतिक महत्व पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र
तिब्बत का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और वह सदियों तक एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र रहा। तिब्बती लोग अपनी अलग भाषा, धर्म (मुख्यतः बौद्ध), संस्कृति और शासन प्रणाली के तहत रहते आए हैं। तिब्बत का चीन से कोई प्रशासनिक संबंध नहीं था। 7वीं से लेकर 20वीं सदी तक तिब्बत अपने स्वयं के धर्मगुरुओं और राजाओं द्वारा शासित था।
ब्रिटिश काल में, 1914 में भारत, ब्रिटेन और तिब्बत के बीच एक संधि हुई थी जिसे "शिमला समझौता" कहा जाता है। इसमें भारत-तिब्बत सीमा रेखा को "मैकमाहोन रेखा" (McMahon Line) कहा गया, जिसे तिब्बत और ब्रिटिश भारत ने मान्यता दी थी। चीन ने इसमें भाग नहीं लिया और इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया। उस समय चीन का तिब्बत पर कोई नियंत्रण नहीं था। इस आधार पर, यह स्पष्ट है कि भारत की सीमा तिब्बत से लगती थी, न कि चीन से।
2. चीन का तिब्बत पर कब्ज़ा
1950 में चीन ने तिब्बत पर सैन्य आक्रमण किया और 1951 तक तिब्बत पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आक्रोशपूर्ण विषय रही लेकिन बड़ी शक्तियों की चुप्पी के कारण चीन ने तिब्बत को अपने अधीन कर लिया। इसके बाद, तिब्बत का प्रशासनिक अस्तित्व समाप्त कर दिया गया और तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी।
तिब्बत पर चीन के कब्ज़े के बाद भारत की उत्तरी सीमा सीधे चीन से जुड़ गई, जो पहले तिब्बत से लगती थी। इससे पहले भारत और तिब्बत के बीच संबंध शांतिपूर्ण और सांस्कृतिक रूप से गहरे थे। दोनों देशों के बीच कोई सैन्य तनाव या युद्ध नहीं था।
3. भारत-चीन सीमा विवाद की जड़ें
भारत-चीन सीमा विवाद की शुरुआत तिब्बत के चीन में विलय के बाद हुई। जब तक तिब्बत स्वतंत्र था, सीमा पर कोई खास तनाव नहीं था। लेकिन चीन ने जबरन तिब्बत को अपने अधीन कर लिया और भारत के साथ सीमा रेखा को चुनौती दी, तब से विवाद शुरू हुआ।
मुख्य विवादित क्षेत्र:
- अक्साई चिन (लद्दाख क्षेत्र): यह क्षेत्र भारत के जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का हिस्सा है, जिसे चीन ने 1962 में कब्जा कर लिया और अब वह इसे अपना बताता है।
- अरुणाचल प्रदेश: चीन इसे "दक्षिण तिब्बत" कहता है और इसे अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है, जबकि यह भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग है।
यह स्पष्ट करता है कि यदि तिब्बत आज स्वतंत्र होता, तो भारत-चीन सीमा विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
4. भू-राजनीतिक महत्व और सांस्कृतिक संबंध
भारत और तिब्बत के बीच केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध भी थे। नालंदा और विक्रमशिला जैसे प्राचीन भारतीय बौद्ध विश्वविद्यालयों से तिब्बती बौद्ध धर्म का गहरा नाता है। दलाई लामा सहित कई तिब्बती गुरुओं ने भारत को अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भूमि माना है।
इसके अतिरिक्त, भारत ने तिब्बती निर्वासित सरकार को धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में आश्रय दिया है, जो आज भी शांति और स्वायत्तता की मांग कर रही है।
5. अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और चुप्पी
अधिकतर देश तिब्बत पर चीन के कब्जे को मौन समर्थन देते हैं या उस पर चर्चा से बचते हैं। लेकिन यह तथ्य अब भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर मौजूद है कि तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था और भारत की सीमा चीन से नहीं बल्कि तिब्बत से लगती थी। भारत सरकार ने भी आधिकारिक रूप से तिब्बत को चीन का भाग स्वीकार किया है, लेकिन कई विशेषज्ञों और इतिहासकारों का मानना है कि यह नीति भविष्य में भारत की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकती है।
6. डॉ.
सुब्रमण्यम
स्वामी
का बयान – सत्य की स्पष्टता
भारत के प्रख्यात नेता,
पूर्व केंद्रीय मंत्री और संवैधानिक मामलों
के जानकार डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने हाल ही
में एक सार्वजनिक मंच
पर यह स्पष्ट रूप
से कहा:
“India does not share a border with China. It shares a border with
Tibet.”
(भारत की सीमा चीन से नहीं, तिब्बत से लगती है।)
उनका यह बयान न
केवल ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है,
बल्कि एक कूटनीतिक संदेश
भी है। वे लंबे
समय से तिब्बत की
आज़ादी के पक्षधर रहे
हैं और यह मानते
हैं कि चीन ने
तिब्बत पर जबरन कब्ज़ा
कर भारत की सीमाओं
को खतरे में डाला
है।
इस बयान का महत्व:
·
यह
बयान उस ऐतिहासिक तथ्य
की पुष्टि करता है, जिसे
वर्षों से नजरअंदाज किया
गया है।
·
यह
भारत की विदेश नीति
पर पुनर्विचार की आवश्यकता को
दर्शाता है।
·
यह
दुनिया को यह याद
दिलाता है कि तिब्बत
की स्वतंत्रता केवल तिब्बत का
मुद्दा नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा
और संप्रभुता से भी जुड़ा
हुआ है।
डॉ. स्वामी के अनुसार, जब
तक भारत तिब्बत को
एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में
नहीं मानता और उसकी आज़ादी
का समर्थन नहीं करता, तब
तक चीन भारत पर
सीमा विस्तार की नीति अपनाता
रहेगा।
6. निष्कर्ष – हमें इतिहास नहीं भूलना चाहिए
भारत की सीमा ऐतिहासिक रूप से तिब्बत से लगती थी, चीन से नहीं। तिब्बत का चीन में विलय एक जबरदस्ती की घटना थी, और तब से ही भारत-चीन सीमा विवाद शुरू हुआ। यदि तिब्बत स्वतंत्र होता, तो शायद आज भारत को बार-बार सीमा विवाद, घुसपैठ और सैन्य तनाव का सामना नहीं करना पड़ता।
यह विषय केवल इतिहास नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य की भू-राजनीति से जुड़ा हुआ है। भारत को न केवल अपने भूगोल को सही परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिब्बत के वास्तविक इतिहास को उजागर करना चाहिए।
समस्त भारत (Samast Bharat)– भारतीय इतिहास, संस्कृति और सत्य को जानने का एक स्रोत
यदि आप भारत के
वास्तविक इतिहास, सांस्कृतिक धरोहर, भू-राजनीतिक दृष्टिकोण
और उपेक्षित तथ्यों के बारे में
प्रामाणिक जानकारी चाहते हैं, तो आप
SamastBharat.com
वेबसाइट पर अवश्य जाएं।
यह एक ऐसा मंच
है जहाँ भारतीय सभ्यता
से जुड़ी ऐतिहासिक सच्चाइयाँ, प्राचीन ज्ञान, सनातन मूल्यों और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण
पर आधारित लेख उपलब्ध हैं।
Samast Bharat का
उद्देश्य है – "भारत को भारत की दृष्टि से समझना।" यहां दी गई
जानकारियाँ न केवल शोध-आधारित होती हैं, बल्कि
उन विषयों को उजागर करती
हैं जिन्हें मुख्यधारा के इतिहास और
मीडिया में अक्सर नजरअंदाज
किया जाता है।
Other
Blog:-
Comments
Post a Comment